कांवड़ियों से पटा सोनांचल, शिवद्वार में भक्तों ने किया महादेव का जलाभिषेक
श्रावण के दूसरे सोमवार पर शिवालयों में उमड़ी भीड़, गुप्तकाशी में गूंजे ‘बोल बम’ के जयकारे
श्रावण मास के द्वितीय सोमवार को पूरे सोनांचल क्षेत्र में शिवभक्ति की अनुपम छटा देखने को मिली। जिले के प्रमुख शिवालयों में सुबह तड़के से ही श्रद्धालुओं का तांता लग गया। वैदिक मंत्रोच्चार के साथ श्रद्धालुओं ने भगवान शिव का पूजन-अर्चन और जलाभिषेक कर पुण्य अर्जित किया।
गुप्तकाशी स्थित शिवद्वार मंदिर में रविवार देर शाम से ही कांवड़ियों का हुजूम उमड़ पड़ा। सोमवार तड़के 3:30 बजे मंदिर के मुख्य पुजारी सुरेश गिरी, शिवराज गिरी, अजय गिरी व अरविंद गिरी द्वारा भगवान शिव व माता भगवती की मूर्तियों का श्रृंगार व आरती के बाद मंदिर के कपाट खोले गए। इसके पश्चात जलाभिषेक की प्रक्रिया शुरू हुई, जो पूरे दिन श्रद्धा और भक्ति के साथ चलती रही। गंगा से गंगाजल लेकर निकले हजारों कांवड़िए
शुक्रवार व शनिवार को घोरावल, आसपास के गाँवों और मध्यप्रदेश की सीमा से सटे क्षेत्रों से हजारों की संख्या में श्रद्धालु गेरुआ वस्त्र धारण कर मिर्जापुर स्थित गंगा नदी के लिए रवाना हुए थे।
कई कांवड़िए शनिवार की शाम को और शेष रविवार तड़के पवित्र गंगाजल भरकर 'बोल बम' के जयकारों के साथ शिवद्वार की ओर रवाना हो गए। रविवार शाम तक घोरावल और पूरे क्षेत्र की सड़कें कांवड़ियों से भर गईं और देर रात तक उनका आना-जाना जारी रहा। प्रशासन और स्वयंसेवकों ने संभाली व्यवस्था
श्रद्धालुओं की भारी भीड़ को देखते हुए प्रशासन पूरी तरह मुस्तैद रहा। उपजिलाधिकारी प्रदीप कुमार यादव, तहसीलदार नटवर सिंह, नायब तहसीलदार विदित तिवारी, प्रभारी निरीक्षक रामस्वरूप वर्मा और चौकी प्रभारी रामज्ञान यादव ने लगातार भ्रमण कर व्यवस्थाओं का जायजा लिया।
आपदा मित्र दीपक मोदनवाल के नेतृत्व में दर्जनों आपदा मित्र रविवार शाम से सोमवार सुबह तक सेवा कार्य में जुटे रहे। मंदिर समिति के ग्राम प्रधान सियाराम यादव व समाजसेवी संजय मोदनवाल समेत कई स्वयंसेवकों ने भव्य आयोजन को सफल बनाने में योगदान दिया। हर तरफ गूंजे "हर-हर महादेव" और "बोल बम"
शिवद्वार मंदिर से लेकर मिर्जापुर गंगातट तक का पूरा मार्ग श्रद्धा की सरिता में डूबा रहा। स्कूल, कॉलेज, धर्मशालाएँ, मंदिर परिसर और तालाबों के पास कांवड़ियों ने प्रवास किया और सोमवार की भोर का इंतजार किया।
सोनांचल में श्रावण मास की यह भक्ति यात्रा एक उत्सव की तरह मनाई गई, जिसमें भक्ति, व्यवस्था और सेवा का सुंदर संगम देखने को मिला।
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